डा. भीमराव अम्बेडकर की एक किताब "Waiting for a Visa" को कोलंबिया यूनिवर्सिटी मे
एक पाठ्यपुस्तक की तरह इस्तेमाल किया जाता है |
इस पुस्तक मे कुल छः अध्याय है |
Waiting for a Visa - By B.R.
Ambedkar
*विदेशी ये तो जानते है की भारत मे Untouchability(अस्प्रश्यता या छुत-अछूत का
रिवाज) है | पर वो इसे समझ नहीं पाते | ये लोग नहीं समझ पाते की कैसे कुछ अछूत,
गाव मे बहुत से दुसरे हिन्दुओ के साथ एक कोने मे अपना जीवन बिताते है | कैसे ये
लोग रोज गाव जाकर हर तरह की गन्दगी साफ करते है, दुकानदार से दूर से ही तेल और
मसाले खरीदते है | हिन्दुओ के घर से खाना इकठ्ठा करते है |
गाव और गाव के लोगो को अपना मानते है, फिर भी गाव
वालो से बिना छुए और बिना छुए(रहम के) रह जाते है |
----0-----अध्याय 3: गर्व, सम्मान और एक भयानक दुर्घटना-----0----
साला था 1929, बाम्बे सरकार ने दलितों पर हो रहे अत्याचारों की पड़ताल के लिए
एक समिति बनाई थी | मुझे भी इस समिति का सदस्य बनाया गया था | हमारी टीम अलग-अलग
हिस्सों मे बट गई | पड़ताल के बाद हमें बाम्बे लौटना था, लेकिन चालिसगाव के लोगो के
बहुत विनती करने पर मे चालिसगाव मे एक रात रुकने को तैयार हो गया |
जब मै महारवाडा स्टेशन पंहुचा, तो
वहा चालिसगाव के लोग मुझे लेने आए, और मेरा स्वागत किया, जिससे मे अभिभूत हो गया |
वहा से चालिसगाव कुछ दुरी पर था, इसलिए वो लोग मेरे लिए सवारी का इंतजाम करने चले
गए | इसमें उन्हें काफी लेर लगी | मुझे समझ नहीं आया की इतनी देर क्यों लग रही है
| आख़िरकार वो एक तांगा लेकर आ गए | मै तांगे पर सवार हो गया और वो लोग शार्टकट से
पैदल ही चालिसगाव की और बड़े |
सड़क पर जाते ही हम एक कार से टकराते टकराते बचे | हम बचे, क्योकि एक पुलिस
वाले ने चिल्लाकर चेतावनी दे दी थी | मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ की ये तांगेवाले, जो
रोज तांगा चलाते है, एसी गलती भी कर सकते है |
खैर, हम आगे बड़े | गाव से ठीक
पहले एक पुल था, इस पुल के दोनों और सुरक्षा के लिए कोई रेलिंग या दीवारे नहीं थी
| जैसा की दुसरे पुल पर होती है | यह तो बस एक पतला सा पत्थरो का बना पुल था | पुल
पर जाते ही तांगे का संतुलन बिगड़ गया और वह एक पत्थर पर उछाला, इसका झटका इतना
अधिक था की मै उछल कर तांगे से पुल पर जा गिरा, और तांगा घोड़े समेत निचे नदी मे
गिर गया | मै इतने जोर से गिरा था की बेहोश हो गया | गाव वाले मुझे लेने आए, और
मुझे उठा कर गाव तक ले गए |
जब मुझे होश आया तो मुझे सारी
कहानी बताई गई | असल मे हुआ यह था, की जब वे लोग मेरे लिए तांगा लेने गए थे, तब
तांगा वाला किसी अछूत के लिए तांगा चलने के लिए तैयार नहीं था, ये बात उसकी गरिमा
के खिलाफ थी | लेकिन मुझे पैदल गाव ले जाना गाव वालो को मेरी गरिमा के खलाफ लग रहा
था | इसलिए उन्होंने हल निकाला और तांगेवाले से तांगा किराए पर ले लिया, और तांगा
चलाने के लिए गाव वालो मे से ही एक व्यक्ति तैयार किया, जिसने पहले कभी तांगा नहीं
चलाया था | उसे लगा होगा की वह तांगा चला लेगा, लेकिन उस पतले पुल पर वह घबरा गया,
और संतुलन खो बैठा |
मेरी गरिमा का ख्याल रखने के
चक्कर मे गाव वाले भूल ही गए, की गरिमा के ख्याल रखने से बढकर है, सुरक्षा का
ख्याल रखना |
मुझे इस घटना से यह भी पता चला की
एक तांगे वाले मे भी इतना गर्व होता है, जो उसे किसी भी अछूत से उचा होने का आभास
कराता है | भले ही अछूत कोई बड़ा वकील (बेरिस्टर) ही क्यों ना हो |
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