डा. भीमराव अम्बेडकर की एक किताब "Waiting for a Visa" को कोलंबिया यूनिवर्सिटी मे
एक पाठ्यपुस्तक की तरह इस्तेमाल किया जाता है |
इस पुस्तक मे कुल छः अध्याय है |
Waiting for a Visa - By B.R.
Ambedkar
*विदेशी ये तो जानते है की भारत मे Untouchability(अस्प्रश्यता या छुत-अछूत का
रिवाज) है | पर वो इसे समझ नहीं पाते | ये लोग नहीं समझ पाते की कैसे कुछ अछूत,
गाव मे बहुत से दुसरे हिन्दुओ के साथ एक कोने मे अपना जीवन बिताते है | कैसे ये
लोग रोज गाव जाकर हर तरह की गन्दगी साफ करते है, दुकानदार से दूर से ही तेल और
मसाले खरीदते है | हिन्दुओ के घर से खाना इकठ्ठा करते है |
गाव और गाव के लोगो को अपना मानते है, फिर भी गाव
वालो से बिना छुए और बिना छुए(रहम के) रह जाते है |
----0-----अध्याय 4: दौलताबाद मे पानी अशुद्ध
करना-----0----
साल था 1934, मेरे कुछ साथियो ने घुमने की मंशा प्रकट की, हमने मिल कर वेरुल की बुद्ध की
गुफाए घुमने का प्लान बनाया | वेरुल जाने के लिए हमें औरंगाबाद से गुजरना पड़ता जो
की हैदराबाद नाम के एक मुस्लिम राज्य मे है |
औरंगाबाद जाने के लिए हमें दौलताबाद को पार करते हुए
जाना पड़ा जो की हैदाराबाद की एक एतिहासिक जगह है | हमने सोचा की दौलताबाद के
प्रसिद्ध किले को भी देख लिया जाए |
हम दौलताबाद के किले तक पहुचे | किले के बाहर ही एक
पानी की टंकी बनी थी | सफ़र मे काफी धुल उड़ चुकी थी, इसलिए हमने वहा अपना चेहरा
धोया | फिर हम किले के गेट की तरफ बड़े, जहा दो हथियारबंद सैनिको ने हमारे लिए गेट
खोले | उतने मे एक बूड़ा मुसलमान, जिसकी सफेद दाड़ी हवा मे लहरा रही थी पीछे से
चिल्लाते हुए आया, "अछूतो ने हमारी टंकी गन्दी कर दी |" कुछ ही देर मे
कई जवान और दुसरे बूड़े मुसलमान भी उसके साथ आ गए और हम सबको गालिया देने लगे,
" अछूत पागल हो गए, अछूत अपना धर्म भूल गए, अछूतो को सबक सिखाना होगा |"
मैंने कहा, "हम यहाँ नए है और यहाँ के रिवाजो के
बारे मे कुछ नहीं जानते |" वो मुसलमान अब वहा रहने वाले अछूतों की और मुड़े और
पूछने लगे, "तुमने क्यों इनको नहीं बताया की इस टंकी का पानी अछूत छु नहीं सकते
|" - बेचारे लोग, वे लोग तो वहा थे भी नहीं जब हम यहाँ पहुचे, वो तो शोर सुन
कर वहा आए थे |
लेकिन मुसलमानो को इसकी कोई परवाह नहीं थी, वे तो बस
हमे और उन्हें गालिया देते जा रहे थे | कुछ गालिया तो बहुत ही ख़राब थी, इतनी की
उन्हें सहन करना मुश्किल हो रहा था |
उस समय मुझे लगा जैसे अब यहाँ दंगा भड़क सकता है, और
शायद किसी का खून भी हो जाए |
कुछ ही समय मे मेरा सब्र टूट गया, और मैंने गुस्से मे
उनसे पूछा - "क्या यही सब तुम्हारा धर्म तुम्हे सिखाता है ? अगर कोई अछूत
मुस्लिम बन जाए, तो क्या तब थी तुम उसे पानी छूने से रोकोगे ??"
मेरे इस सीधे सवाल का जवाब किसी के पास नहीं था, और
अचानक वहा एक खामोशी छा गई | फिर मैंने पूछा, "अब हम किले मे जा सकते है या
नहीं, बताओ मुझे ? अगर नहीं, तो हमें भी यहाँ नहीं रुकना |"
इतने मे एक सैनिक ने मुझसे मेरा नाम पूछा और अन्दर से
सुपरीटेंडेंट को बुला लाया | सुपरीटेंडेंट ने हमें अन्दर आने दिया, और ये भी कहा
की किले मे पानी को न छुए |
--> इस घटना ने मुझे बता दिया, की वह व्यक्ति जो
हिन्दू के लिए अछूत होता है, वो मुसलमान के लिए भी अछूत होता है |
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